Moritā Therapy: Apne Emotions Ko Accept Karna Seekho

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लेकिन उससे पहले समझते हैं कि ये मोरिटा थेरेपी है क्या। जिस समय लोगोथेरेपी आई थी, उससे कुछ साल पहले जापान में एक डॉक्टर थे – शोमा मोरिटा। उन्होंने अपनी एक खास थेरेपी डेवलप की जिसे कहा गया “मोरिटा थेरेपी”। यह थेरेपी OCD, न्यूरोसिस और PTSD जैसे मानसिक परेशानियों में काफ़ी असरदार साबित हुई है।

पश्चिमी थेरेपीज़ में अक्सर हमारे इमोशंस को बदलने की कोशिश की जाती है – जैसे नेगेटिव फीलिंग्स को दबा देना, या उन्हें पॉजिटिव से रिप्लेस करना। लेकिन मोरिटा थेरेपी में हमें यह सिखाया जाता है कि हमें अपने इमोशंस को कंट्रोल नहीं करना है, बल्कि उन्हें वैसे ही देखना है जैसे वे हैं।

क्यों? क्योंकि हमारे इमोशंस अपने आप बदलते हैं – हमारी हरकतों के साथ। यानी, एक्शन पहले – इमोशन बाद में। मोरिटा ने यही समझाया – जब हम बार-बार कोई चीज़ करते हैं, तो उसके साथ जुड़े इमोशंस खुद बनने लगते हैं।

इस थेरेपी में हमें अपने डर, इच्छा, चिंता – इन सबको महसूस करना और एक्सेप्ट करना सिखाया जाता है। मोरिटा ने “लेट देम गो” का जो आइडिया दिया, वो यही कहता है कि जैसे एक गधा लकड़ी से बंधा हो, वो उसी के चारों ओर घूमता रहे – वैसे ही हम अपनी फीलिंग्स में फंसे रहते हैं, और बाहर नहीं निकल पाते।

मोरिटा थेरेपी का पहला प्रिंसिपल है – Accept your feelings.
अगर कोई ऑब्सेसिव थॉट बार-बार आ रहा है, तो उसे रोकने या हटाने की ज़रूरत नहीं है। अगर रोकने की कोशिश करोगे, तो वो और ज़्यादा आएगा।

एक ज़ेन मास्टर ने कहा था:
“अगर एक लहर को दूसरी लहर से हटाओगे, तो पूरा समुंदर मिलेगा।”
यानी, अपनी फीलिंग्स से भागने की कोशिश करोगे तो और ज़्यादा उलझोगे।

मोरिटा कहता है – इमोशंस मौसम जैसे होते हैं। उन्हें प्रेडिक्ट नहीं कर सकते, कंट्रोल नहीं कर सकते। लेकिन उन्हें महसूस कर सकते हैं।

दूसरा स्टेप है – Do what you should be doing.
हमें अपनी हालत या फीलिंग्स से बचना नहीं है, बल्कि जो हमें करना है – उसे करना है। प्रेज़ेंट मोमेंट पे फोकस करना है। क्योंकि जब तक हम ये नहीं करेंगे, हमारी suffering खत्म नहीं होगी।

थेरेपिस्ट का असली मकसद होता है कि आप इस काबिल बनें कि चाहे कुछ भी हो जाए, आप उससे डरें नहीं। मोरिटा थेरेपी में ये आपको समझाया नहीं जाता, बल्कि अपने एक्शंस से खुद आपको समझ में आने लगता है।

तीसरा स्टेप है – Discover your life purpose.
हम इमोशंस को कंट्रोल नहीं कर सकते, लेकिन हम अपने एक्शन को कंट्रोल कर सकते हैं। इसलिए, हमें रोज़ ये सवाल पूछना चाहिए – “मुझे अभी क्या करना है?”

अब जानते हैं मोरिटा थेरेपी के चार स्टेजेस के बारे में:

1. Isolation & Rest (पहला हफ्ता)

5-7 दिन तक पेशेंट को एक रूम में बिल्कुल अकेले रखा जाता था – बिना फोन, टीवी, किताबें, कोई दोस्त या फैमिली। बस वो खुद और उनके विचार। थेरेपिस्ट सिर्फ एक बार दिन में आते और interaction बहुत कम होता। मकसद – अपनी फीलिंग्स को observe करना।

2. Light Occupational Therapy (दूसरा हफ्ता)

यहां पेशेंट कुछ हल्के टास्क करते – जैसे डायरी लिखना, ब्रीदिंग एक्सरसाइज़, गार्डनिंग, ड्रॉइंग आदि। फिर उन्हें नेचर में जाने दिया जाता – लेकिन अब भी किसी से बात नहीं करनी होती थी।

3. Occupational Therapy (तीसरा हफ्ता)

अब उन्हें फिजिकल एक्टिविटीज़ करवाई जाती थीं – जैसे लकड़ियां काटना, पहाड़ों में चलना, या फिर राइटिंग, पेंटिंग जैसी चीज़ें। अब वो दूसरे लोगों से टास्क से रिलेटेड बात कर सकते थे।

4. Return to Social Life

अब पेशेंट को असली दुनिया में वापस भेजा जाता था – लेकिन अब उनके पास एक मकसद होता था, एक सेंस ऑफ पर्पस। उन्हें meditation और occupational activities की प्रैक्टिस जारी रखनी होती थी।

अंत में तीन सवाल जो आपको खुद से पूछने हैं:

  1. आपने सामने वाले से क्या पाया?
  2. आपने बदले में उन्हें क्या दिया?
  3. आपकी वजह से उन्हें क्या नुकसान या तकलीफ हुई?

इन सवालों के ज़रिए हम दूसरों को अपनी परेशानी की वजह मानना छोड़ देते हैं।

मोरिटा ने कहा – अगर आपको किसी पर गुस्सा आ रहा है, तो 3 दिन रुक जाओ। देखना, शायद चौथे दिन तक वह गुस्सा गायब हो जाएगा।

लोगोथेरेपी और मोरिटा थेरेपी – दोनों का मकसद एक ही है – खुद को जानना। वो ताकत जो हमें बाहर से नहीं, अंदर से मिलती है।

जब आप उस मकसद को पा लोगे – तो आपको बस हिम्मत चाहिए उस रास्ते पर चलने की।